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लेखनी कहानी -09-Dec-2022 विश्वासघात

हरी बाबू चिंतामग्न से चिकसाना थाने की ओर बढ़े जा रहे थे । 70 वर्षीय हरी बाबू देखने में इतने बूढ़े नहीं लगते थे लेकिन पिछले पांच महीने में वे एकदम से बुढा गये थे । जवान बेटे के अचानक गायब हो जाने का गम कम होता है क्या ? रोज एक जवान बहू और पोता पोती सामने आते हैं तो छाती भूकंप से दरके पहाड़ की तरह चटक जाती है । न जाने कौन सी शक्ति ने उन्हें रोक रखा था वरना घर के हालात देखकर कोई भी इंसान पागल हो सकता था । 

और बार की तरह इस बार भी थानेदार ने वही रटा रटाया जवाब दे दिया "बाबूजी, आप क्यों नाहक परेशान होते हैं और हमको भी करते हैं । कोई भी सुराग नहीं लगा है अभी तक आपके लड़के पवन का । जैसे ही कोई खबर मिलेगी , सबसे पहले आपको ही बतायेंगे । मगर एक पेंच है । आप कहते हैं कि उसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी और उसका कोई "प्रेम प्रसंग" भी नहीं चल रहा था । लूटपाट के भी कोई निशान नहीं मिले हैं घर में । आप कहते हैं कि कोई चिंता फिकर की बात थी नहीं । जवान सुंदर सी पत्नी है ही उसकी और एक बेटा तथा एक बेटी भी है । काम धंधा भी ठीक ठाक ही था । फिर घर से भागने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा है । कहीं ऐसा तो नहीं है कि उसकी घरवाली का कोई "चक्कर" किसी से चल रहा हो और तुम्हारे लड़के को उसका पता चल गया हो । उसकी पत्नी और उसके "आशिक" ने उसे "ठिकाने" लगा दिया हो" इंचार्ज रंधावा सिंह ने संदेह प्रकट करते हुए गहरी निगाह हरी बाबू पर डालते हुए कहा । 

इंचार्ज की बातों से हरी बाबू को बहुत ठेस लगी । पुलिस वाला है तो क्या कुछ भी बक देगा ?  अगर उनके वश में होता तो वे इस बेहूदगी पर वहीं पे इंचार्ज को एक थप्पड़ रसीद कर देते । आखिर ऐसे शब्दों का प्रयोग करने की उसने हिम्मत कैसे कर ली ? मगर हरी बाबू मौके की नजाकत भांपकर चुप ही रहे और धीरे से बोले 
"साहब, मुझे मेरे बेटे से भी ज्यादा भरोसा मेरे बेटे की पत्नी सीमा पर है । आज के इस घोर कलियुग में वह सती सावित्री की तरह पतिव्रता , अन्नपूर्णा और सुशील गृहणी है । एक बार मैं अपनी सगी बेटियों पर चाहे विश्वास करूं या नहीं, मगर मैं अपनी बहू सीमा पर अटल विश्वास करता हूं । वह कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकती है । धरती चाहे इधर की उधर हो जाये मगर सीमा का चरित्र हिमालय से भी ज्यादा मजबूत है" । ये वाक्य कहते कहते हरी बाबू की आंखों से दो आंसू गालों पर लुढ़क पड़े जो दाढी के बियाबान जंगल में बरसाती नाले की तरह बह निकले । 
"अच्छा, ठीक है हरी बाबू । अगर इतना ही विश्वास है आपको तो अब आगे से इस बारे में मैं कुछ भी पूछकर आपका दिल नहीं दुखाऊंगा । हम पूरी कोशिश कर रहे हैं आपके बेटे पवन को ढूंढने की और आगे भी ढूंढते रहने की कोशिश निर्बाध रूप से चलती रहेगी । अगर आपको कोई भी सूचना मिले तो हमें जरूर बताना" । और इंचार्ज साहब अपने काम में व्यस्त हो गये । 

बेचारे हरी बाबू ! कितनी उम्मीदें लेकर आये थे थाने में कि आज कुछ तो सुखद समाचार मिलेंगे , मगर सब उम्मीदें एक ही झटके में नेस्तनाबूद हो गईं । पवन की मां पूछेगी तो मैं क्या कहूंगा ? बेटा चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये एक मां के लिए तो वह बच्चा ही रहता है । जवान बहू मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखेगी तो मैं एक बेचारा बूढा आदमी उनका तेज कैसे संभालूंगा ? उन आंखों में झांकने की हिम्मत खत्म हो गई है मेरी । दोनों पोते पोती अपने पापा के बारे में पूछेंगे तो उन्हें क्या कहूंगा ? बस यही चिन्ता खाये जा रही थी हरी बाबू को । वे अपने पैरों को घसीटते हुए से ले जा रहे थे लेकिन पैर चलने का नाम नहीं ले रहे थे । ऐसा लग रहा था कि दोनों पैर दस दस मन के भारी से हो गये थे ।

घर पहुंचने पर हरी बाबू के साथ वही हुआ, जिसका डर था । सबकी तीखी निगाहें हरी बाबू पर पड़ी जैसे उन्होंने पवन को कहीं छुपा रखा हो । हरी बाबू बनावटी चेहरे से फीकी हंसी हंसते हुए बोले " इंचार्ज साहब ने कहा है कि बहुत जल्दी आनेवाला है अपना पवन । चिंता मत करो और अपना अपना काम करो" । 

घरवाले भी जानते थे कि इसका मतलब क्या है ? हरी बाबू उन्हें झूठी तसल्ली दे रहे हैं मगर वे भी नहीं चाहते थे कि हरी बाबू पर गमों का और कोई भार पड़े । बूढा शरीर है क्या पता सदमे से कहीं "टें" ना बोल जायें ? सब लोग अपने अपने काम में मशगूल हो गये । रात को खाना खाकर सब लोग सो गये । 

हरी बाबू की आंखों में नींद का नामोनिशान भी नहीं था । पवन के साथ बीते हुए दिन एक फिल्म की तरह उसकी आंखों के आगे से चलने लगे । कैसे उसे पढाया लिखाया । कैसे उसकी शादी सीमा के संग हुई । शादी को दस साल हो गये थे । कैसे पोता कार्तिक पैदा हुआ और बाद में पोती कृतिका भी पैदा हो गई । पवन अपने बीवी बच्चों को अपने काम धंधे के कारण दिल्ली ले गया था । कितने खुश थे सब लोग । 
2020 में अचानक कोरोना महामारी आ गई और पवन का सारा काम धंधा ठप्प हो गया । तब उसने ही पवन को बच्चों के संग अपने गांव बुलवा लिया था । पवन ने गांव में ही काम धाम शुरू कर दिया । फिर से जिंदगी पटरी पर आ गई । पर अचानक एक रात पवन गायब हो गया । आज पांच महीने हो गये हैं पवन को गायब हुए मगर कोई सुराग हाथ ही नहीं लग रहा था । 
चिंता और हताशा के कारण हरी बाबू उद्विग्न हो रहे थे । बार बार करवटें बदल रहे थे मगर नींद ऐसी रूठी थी कि मान ही नहीं रही थी । रात का एक बज रहा था । हरी बाबू पेशाब करने उठे और आंगन में आ गये । 
पूरे मकान में अंधेरा था । पूर्ण निस्तब्धता व्याप्त थी वातावरण में । अचानक उनकी निगाह ठिठकी । सीमा के कमरे से उजाले की एक हलकी सी दरार दरवाजे के नीचे से बाहर आने को छटपटा रही थी । 
"इतनी रात को सीमा क्या कर रही है" ? हरी बाबू के मन में आया । कौतुहल वश वे सीमा के कमरे की ओर बढ गये । दरवाजे पर जाकर वे ठिठक गये । उसके कमरे से अजीब सी आवाजें आ रही थी । गौर करने वाली बात यह थी कि ये आवाजें औरत और मर्द दोनों की थीं । उन्होंने धीरे से दरवाजा पुश किया मगर वह अंदर से बंद था । हरी बाबू ने देखा कि खिड़की थोड़ी खुली हुई है । वे खिड़की के सामने चले गये और अंदर की ओर झांका । चूंकि लाइट जली हुई थी इसलिए कमरे का सारा दृश्य साफ साफ नजर आ रहा था । अंदर का दृश्य देखकर हरी बाबू जड़वत हो गये । सीमा बिल्कुल निर्वस्त्र थी और किसी मर्द के साथ आपत्तिजनक अवस्था में थी । हरी बाबू के मुख से एक चीख निकल गई । घबराकर सीमा ने खिड़क की ओर देखा । सामने ससुर को देखकर वह सकते में आ गई और उसने झट से बिजली बंद कर दी । 
थोड़ी देर में सीमा कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकली और हरी बाबू के पैरों में गिर पड़ी । उसके साथ साथ एक युवक भी कमरे से बाहर निकला । हरी बाबू उसे पहचान गये । वह पवन का खास दोस्त रवि था । हरी बाबू को वह नजारा देखकर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । मगर जो सच था, सामने था। 

सीमा त्रिया चरित करने लगी । "मुझसे गलती हो गई बाबूजी, मुझे क्षमा कर दीजिए" । वह बार बार कह रही थी और हरी बाबू कह रहे थे "तूने मेरे विश्वास को तोड़ा है सीमा, मैं तुझे कभी क्षमा नहीं कर सकता हूं" । हरी बाबू ने दो थप्पड़ सीमा में रसीद कर दिये । सीमा के गाल पर पड़े थप्पड़ों से रवि आगबबूला हो गया और हरी बाबू का गिरेबान पकड़कर बोला "उसे छोड़ दे बुड्ढे, मुझसे बात कर । और बात भी क्या करेगा तू ? तुझे तो कुछ पता ही नहीं है इसलिए चुपचाप पड़ा रह किसी कोने में नहीं तो तेरा भी वही हाल करूंगा जो मैंने और सीमा ने पवन का किया है" । 
अब हरी बाबू को दोनों पर संदेह हो गया । रवि वहां से भाग निकला और हरी बाबू अपने कमरे में आ गये । अब नींद कैसे आ सकती थी ? सीमा का निर्वस्त्र बदन और कामध्वनि की आवाजें उन्हें चैन लेने नहीं दे रही थी । 
दूसरे दिन सुबह ही वह थाने चले गये और थानेदार को सारी बातें बता दीं । थानेदार तुरंत पुलिस दल लेकर आ गया । सीमा के कमरे की तलाशी ली तो कुछ कपड़ों पर खून के धब्बे मिले । बस इस आधार पर सीमा को गिरफ्तार कर लिया गया । बाद में रवि को भी गिरफ्तार कर लिया गया । दोनों ने अपना अपराध कबूल कर लिया । 

सीमा ने घटना के बारे में बताया "दिल्ली में पवन की मुलाकात रवि से हो गई । दोनों एक ही गांव के थे इसलिए घर पर आना जाना शुरू हो गया । रवि एक नौजवान और स्मार्ट, गठीले बदन का लड़का था । बहुत हंसी मजाक करता था वह । वह उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसकी ओर खिंचती चली गई । 
एक दिन जब पवन अपने काम धंधे पर चला गया था तब पीछे से घर पर रवि आ गया । उस दिन पहली बार सीमा ने अपनी सीमा लांघी थी । उस दिन के बाद रवि पीछे से घर आने लगा और हम लोग आनंद लोक की नियमित सैर करने लगे । मगर कोरोना के कारण हम लोग गांव आ गये तो मिलन में समस्या खड़ी हो गई । मैं रवि के बिना तड़पने लगी । तब रवि दिल्ली से मेरे लिये रात को बारह बजे आता । मैं खाने में नींद की दवाई मिला देती तो घर के सब लोग गहरी नींद में सो जाते । तब हम दोनों पूरी रात खूब मस्ती करते । 

एक दिन हम लोग आंगन में सो रहे थे । उस रात रवि को मैंने बुलाया था और हम लोग अपने "कार्यक्रम" में व्यस्त हो गये । उसी चारपाई पर पवन सो रहा था । अचानक उसकी आंख खुल गई और उसने सब कुछ देख लिया । रवि ने उसका मुंह बंद कर दिया और एक हाथ से उसका गला दबा दिया । वह निढाल होकर गिर पड़ा और उसका सिर फूट गया । वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई । रवि ने बाहर खड़े अपने दोस्त को अंदर बुलाया और उसे एक गद्दे में लपेटा और मोटरसाइकिल पर ले गये । उसकी लाश पर बीस किलो का पत्थर रखकर उसे नहर में धकेल दिया । मैंने खून के सारे धब्बे साफ कर दिये । 
सुबह होने पर मैंने पवन के गायब होने की कहानी गरवालों को सुना दी । ससुर जी के मुझ पर विश्वास के कारण पुलिस ने मुझसे पूछताछ ही नहीं की और हम लोग बच गये । थोड़े दिनों के बाद सब कुछ नॉर्मल हो गया और मैं और रवि फिर से रंगरेलियां मनाने लग गये । मगर उस दिन पता नहीं बाबूजी की नींद कैसे खुल गई । नींद की दवाई तो उस दिन भी मिलाई थी मैंने खाने में" । सीमा की आंखों में पश्चाताप के कोई चिन्ह नहीं थे । 
हरी बाबू को काटो तो खून नहीं । जिस बहू पर बेटे से ज्यादा विश्वास किया , जिसे सीता की तरह पतिव्रता समझा वह ऐसी कुलटा निकलेगी, यह नहीं सोचा था उन्होंने । किसी इंसान की हत्या करने से भी भयंकर है किसी के विश्वास का कत्ल करना । सीमा ने वही सबसे घृणित काम किया था । अब उसके कर्मों की सजा कानून ही देगा पर दो बच्चे तो अनाथ हो गये , उनका क्या ? 

(यह एक सत्य घटना है जो राजस्थान के भरतपुर जिले की है)

श्री हरि 
9.12.22 


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10 Comments

madhura

23-Jul-2023 09:49 AM

Nice sir

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kashish

23-Jul-2023 09:08 AM

Very nice

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shweta soni

09-Dec-2022 07:36 PM

बेहतरीन रचना

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Hari Shanker Goyal "Hari"

10-Dec-2022 02:17 AM

धन्यवाद जी

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